रैली निकाल कर तहसीलदार साहब को ज्ञापन सोपा ज्ञापन

निवाली  (अमित ब्राह्मणे )नगर मै सोमवार सुबह 10 बजे से 2 बजे तक धारणा प्रदर्शन किया गया जिसमें।   डॉ बाबासाहेब अंबेडकर दलित समिति निवाली ,आदिवासी एकता परिषद ,आदिवासी मुक्ति संगठन ,आदिवासी कर्मचारी संगठन ,आदिवासी छात्र संगठन ,आदिवासी बारेला संगठन ,नेशनल एसटी एससी ओबीसी, जयस निवाली के द्वारा जनपद पंचायत के समीप मुख्य बाजार में धारणा प्रदर्शन किया गया उसके बाद 2 : 20 बजे रैली निकाल कर तहसीलदार साहब को ज्ञापन सोपा ज्ञापन का वचन डॉ जितेश्वर खरते ने किया एवं आभार महेंद्र गोयल ने माना  नगर में डॉक्टर सुभाष काशीनाथ के विरुद्ध महाराष्ट्र सरकार एवं अन्य के प्रकरणों में दायर विशेष अनुमति याचिका एस एल पी 5561 2016 में माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पारित आदेश दिनांक 20 मार्च 2018 बाबत उपरोक्त विषय अंतर्गत माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा पारित आदेश दिनांक 20, 2018 की ओर आपका ध्यान आकर्षित करना चाहते हैं उल्लेखनीय है कि उक्त आदेश दिनांक 20, 2018 के द्वारा माननीय उच्चतम न्यायालय ने अनुसूचित जाति  जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम 1990 आगे सुविधा हेतु एससी एसटी एक्ट के प्रावधानों को करते हुए निम्न आदेश पारित किए हैं एससी एसटी एक्ट की धारा 18 के अनुसार सेक्टर में दर्ज आपराधिक प्रकरण में दंड प्रक्रिया संहिता 1993 की धारा 438 लागू नहीं होगी दंड प्रक्रिया 1973 की धारा 38 में अग्रिम जमानत का प्रावधान है धारा एससी एसटी एक्ट पर लागू नहीं होती एससी एसटी एक्ट में अपराधी व्यक्ति को कई अग्रिम जमानत नहीं मिलती थी परंतु परिणाम स्वरुप व्यक्ति की गिरफ्तारी होती थी किंतु माननीय उच्चतम न्यायालय ने एससी एसटी एक्ट की धारा 18 को ही गैर संवैधानिक प्रेषित कर दिया है दोषी व्यक्ति की अग्रिम जमानत हो जाएगी vऔर वह गिरफ्तार से बच जाएगा इस से भी आगे बढ़ते हुए SC ST के तहत प्रकरण आता है तो अत्याचार हुआ है या नहीं इसकी जांच उप पुलिस अधीक्षक के स्तर पर अधिकारी द्वारा की जावेगी और अधिक की रिपोर्ट में यदि यह पाया जाता है कि अत्याचार अंतर्गत अत्याचार एस टी ई एक्ट के प्रावधान में आता है और स्वार्थ के प्राइवेट नहीं है सभी उस पर एससी एसटी एक्ट के अंतर्गत प्रकरण दर्ज होगा अधिकारी की रिपोर्ट नकारात्मक आने पर भी नहीं होगा यदि दोषी व्यक्ति सरकारी कर्मचारी है तो उसके नियोक्ता की अनुमति से ही सरकारी कर्मचारी को गिरफ्तार किया जाएगा जा सकता है माननीय उच्चतम न्यायालय के आदेश से ऐसी एसटी एक्ट पुलिस प्रभावी हो गया है क्योंकि इस आदेश इस देश की बर्बादी और जातिवादी व्यवस्था नहीं प्रशासन के प्रत्येक स्तर पर सवार वादी और सामंतवादी सोच के लोग कब की है इसलिए यह संभव है कि पुलिस अधिकारी निष्पक्ष जांच करेंगे इसके अलावा दोषी व्यक्ति गिरफ्तार नहीं होने से वही वह पीड़ित पीड़ित को डर आएगा धमका आएगा जलालत से अपने पक्ष में कराएगा और साथ ही तथ्यों में छेड़छाड़ भी करेगा इस परिस्थितियों में पुलिस जांच में प्रकरण सिद्ध होगा करीब-करीब असंभव से यानी एससी एसटी एक्ट में कोई प्रकरण दर्ज ही नहीं होगा यदि उच्चतम न्यायालय के आदेश के बाद एससी एसटी एक्ट का होना या ना होना बराबर ही है उल्लेखनीय है कि नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो की 30 11:00 2017 को जारी रिपोर्ट के अनुसार अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति पर अत्याचारों में वर्ष 2016 में 8 पॉइंट 5% और 4 पॉइंट 7% बढ़ोतरी हुई है वर्ष 2015 में एससी एसटी एक्ट के अंतर्गत अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति अत्याचार 38668 है जो वर्ष 2016 में 86868 हो गए हैं यानी 5% और 7% की दर हुए हैं जो बढ़ोतरी हुई है इतनी संख्या में प्रकरण दर्ज होने का मुख्य कारण एक जैसा प्रभाव कानून कानून की मौजूदगी के बावजूद बताता है कि अत्याचार के 50% प्रकरण SC ST में दर्ज हो पाते हैं शेष 50% SC ST पीड़ित तो भाई-भाई भाई वर्ष प्रकरण दर्ज हुई नहीं करा दें करवा दें इसका मतलब यह हुआ है कि उच्चतम न्यायालय के आदेश के बाद एससी एसटी एक्ट अंस प्रभावी हुआ है इसका दो तरफा असर होगा प्रथम माता सावंतवाडी प्रभावी कानून ना होने से सरवन वादी समाज के कानून का कोई भय नहीं होगा और वह देखो देखो होकर SC ST पर अत्याचार करेगा दूसरा प्रभावी कानून के अभाव में SC ST को मालूम है कि पुलिस द्वारा कार्यवाही नहीं होगी इसके विपरीत पुलिस और अत्याचारी द्वारा SC ST को प्रेरित किया जाएगा इसका परिणाम यह होगा कि अत्याचार के प्रकरण दर्ज होने से यह गलत देश जाएगा कि SC ST में कभी आई कमी आई है जबकि वस्तु स्थिति होगी कि लोकतंत्र की मूल भावना के विपरीत होगी माननीय उच्च न्यायालय में अपील करने का यह कारण है कि इस एक्टर का इस संबंध में आपका ध्यान आकर्षित प्रकरणों की ओर चाहते हैं जिससे सत्र न्यायालय में दोषियों को एससी एसटी एक्ट के तहत सजा सुनाई गई पश्चात उच्च न्यायालय ने सजा मुक्त किया किंतु उच्चतम न्यायालय ने अंत सत्र न्यायालय के आदेश का बरक़रार रखते हुए दोषियों को सजा सुनाई

    1 जीजा फिल्मी तमिलनाडु 1958 44 अनुसूचित जाति सदस्य की सामूहिक हत्या

2  कर्मन चंदू आंध्र प्रदेश 1984 5 अनुसूचित जाति सदस्यों की सामूहिक हत्या

3 तूतक सुंदर आंध्र प्रदेश 1991 सदस्यों की सामूहिक हत्या

4 बिहार के बथानी टोला 1996 और लक्ष्मणपुरा 1971 प्रकरण

5 लंबा लवली कर्नाटक जिसमें एक ही परिवार के सदस्यों की हत्या की गई एक बचा हुआ सदस्य न्यायालय में अपने बयान से पलट गया बाद में उसने कहा कि मुझे सुरक्षा की गारंटी दे तो मैं सच बयान करूं उक्त प्रकरण में से सिद्ध होता है कि आरोपी दोषमुक्त होने के होने से नहीं छूटते किंतु आरोपी पुलिस द्वारा लक्ष्य सरकारी जांच सरकारी वकील द्वारा व कानूनी प्रक्रिया का पालन न करना भाई वॉइस गवाहों के बयान से पलट ना और आरोपी द्वारा शिक्षा से छेड़छाड़ के कारण छूटते हैं अतः उच्चतम उच्चतम न्यायालय के समक्ष सही सत्य प्रस्तुत करना आवश्यक है उपरोक्त कारणों के प्रकाश में संपूर्ण अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के सदस्य यह मांग करते हैं कि भारत सरकार को बाध्य किया जाए कि माननीय उच्चतम न्यायालय के द्वारा अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम 1990 के संदर्भ में जारी किए गए

इस अवसर पर जनपद अध्यक्ष विकास डावर, श्री मति तुलसीबाई दरबार सिसोदिया सरपंच ग्राम पंचायत निवाली, हुकुम पॉवर , राजेश कनोजे हेमन्त पटेल, मनीष,मंशाराम चौहान, ब्राह्मणे,अमसिंग,वीरेन्द्र जाधव, राकेश ठाकुर ,हिरमल सर,मदन सर ,पंकज जितेंद्र पिपलोदे भोसले,डॉ.अमित,कबासिंग सेनानी,नरेंद्र सिसोदिया,भालसे सर,रूपेश  आदि उपस्थित थे ।

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